गुरुवार, 23 नवंबर 2017

स्वच्छ भारत अभियान बापू के 'स्वच्छ भारत' के सपने को पंख दे रहा है

देश इस वर्ष महात्मा गांधी की जन्मशती मना रहा है। इस साल प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के फ्लैगशिप स्वच्छता अभियान-स्वच्छ भारत अभियान के तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं। सरकार के लिए यह सर्वेक्षण का समय है। मोदी सरकार ने महात्मा गांधी की 150वीं जन्मशती के अवसर पर दो अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच से मुक्त भारत का महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। तीन वर्ष की लघु अवधि में इस दिशा में सफलता दिखने लगी है। सरकार को 2019 तक हर घर में शौचालय उपलब्ध कराने का लक्ष्य पूरा करना है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत दो अक्टूबर 2014 तक 4.90 करोड़ शौचालय बन चुके थे। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार 24 सितंबर 2017 तक 2.44 लाख गांव और 203 जिले खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिए गए हैं। इस कार्यक्रम की विशेषता यह है कि बहुत से सार्वजनिक क्षेत्रों के साथ-साथ निजी संस्थानों ने भी सरकार की इस अहम योजना में मिलकर काम किया है और इसे सफल बनाया है। कई औद्योगिक घरानों ने कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के तहत कई गांवों को गोद लिया है और वहां शौचालय बनाने की जिम्मेदारी ली है। 2012 में केवल 38 प्रतिशत क्षेत्र स्वच्छता कवरेज से जुड़े थे। अब यह बढ़कर 68 प्रतिशत हो गया है। लेकिन अब भी बहुत कुछ करना बाकी है।

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक पखवाड़े के लिए स्वच्छता ही सेवा “क्लीनलिनेस इज सर्विस” अभियान आरंभ किया है। इसका समापन गांधी जयंती पर अगले महीने होगा। इस अभियान के तहत देश भर में स्वच्छता मुहिम को प्रोत्साहित करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए हैं। इसका उद्देश्य तीन वर्ष पहले राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में आरंभ किए गए स्वच्छ भारत अभियान को बल देना है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय इस अभियान का प्रचार प्रसार कर रहा है। इसके साथ इस अभियान में अन्य मंत्रालय, सरकारी विभाग, गैर-सरकारी संगठन भी स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के कार्य में जुटे हैं।

दो अक्टूबर 2014 इतिहास की पुस्तकों में स्वच्छ भारत अभियान के रूप में दर्ज होगा। इस दिन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में स्वच्छता के लिए खुद झाडू लगाई थी। प्रधानमंत्री ने स्वच्छता का बिगुल बजाया और लोगों ने इस महत्ती कार्य में उनका साथ दिया, क्योंकि यही महात्मा गांधी के लिए सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलि है। महात्मा गांधी एक शती पूर्व ही भारत के लिए स्वच्छता को पहली प्राथमिकता देना चाहते थे। इस अभियान का उद्देश्य स्वच्छता के अन्य लक्ष्यों के साथ खुले में शौच की आदत को समाप्त करना है और अधिक शौचालयों का निर्माण एवं कूड़े-कचरे के प्रबंधन में सुधार लाना है।

स्वच्छता के महत्व पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने कई बार कहा है कि स्वच्छ भारत के विचार का राजनीति से कोई लेनादेना नहीं है। यह देश भक्ति से प्रेरित है। हमें स्मरण होना चाहिए कि गांधी जी ने कहा था कि स्वच्छता, स्वाधीनता से अधिक महत्वपूर्ण है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी स्वच्छता खुद करने को कहा था। वे चाहते थे कि हम अपनी सफाई स्वयं करें और छूआछूत की इस घृणित परिपाटी को समाप्त कर दें। यह आंदोलन स्वाधीनता के बाद धीमा पड़ गया। हालांकि विभिन्न सरकारों ने इस दिशा में कई कार्यक्रम चलाए, लेकिन यह दुखद है कि स्वच्छता और अस्पर्शता दोनों विषय बापू के निधन के लगभग 70 साल बाद भी देश में विद्यमान हैं। अपर्याप्त स्वच्छता स्वास्थ्य संबंधी कई बीमारियों और असमय मृत्यु का कारण बनती है। एक स्वयंसेवी संगठन वॉटर ऐड ने 2014 की अपनी एक रिपोर्ट में इस गंभीर स्थिति के बारे में जिक्र किया था। इसने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि भारत में 1.2 बिलियन लोगों में से एक तिहाई से कम लोगों की पहुंच स्वच्छता तक है। पांच साल की उम्र तक के 1,86,000 से भी अधिक बच्चे हर साल असुरक्षित जल और दयनीय स्वच्छता सेवाओं के वजह से डायरिया रोगों के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। इससे भारत की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है। अनुमान लगाया गया है कि देश में हर साल स्वच्छता की दयनीय स्थिति के कारण बीमारियों और असमय मृत्यु से देश अपनी जीडीपी का 6.4 प्रतिशत खो देता है। अब स्थिति बदल रही है और विभिन्न सरकारी एजेंसियां स्वच्छता की चुनौती का सामना करने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य कर रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा है कि पूर्व में स्वच्छता और निजी स्वच्छता की कमी के कारण भारत में अनुमानतः प्रति व्यक्ति साढ़े छह हजार रुपये बर्बाद होते हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छ भारत अभियान जन-स्वास्थ्य पर अपना विशिष्ट प्रभाव छोड़ेगा। इससे निर्धनों की आय की बचत होगी और अंततः राष्ट्र की आर्थिक स्थिति सुधरेगी। उन्होंने कहा कि स्वच्छता को राजनीतिक हथियार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसे राष्ट्रभक्ति और जन-स्वास्थ्य की प्रतिबद्धता से जोड़ा जाना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने एक सर्वेक्षण किया है, जिसमें स्वच्छ भारत मिशन के लाभों के बारे में एक अनुमान लगाया गया है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छता के सुधार के कार्य में निवेश किये गये एक रुपया से साढ़े चार रुपये की बचत होगी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि खुले में शौच से मुक्त समाज का निर्माण होता है तो चिकित्सा खर्च कम होगा, समय की बचत होगी और जलजनित रोगों से होने वाली मृत्यु दर को रोका जा सकेगा, जिससे प्रति वर्ष हर घर में लगभग 50,000 रुपये की बचत हो सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इससे निर्धनतम लोगों को सर्वाधिक फायदे होंगे।

लेकिन इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए स्थानीय निकायों और राज्य सरकारों को दोगुने प्रयत्न करने होंगे और जागरूकता के प्रसार तथा निजी स्वच्छता और शुद्धता के बारे में लोगों के पुरातन दृष्टिकोण को बदलना होगा। सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद कई स्थानों पर बड़ी संख्या में आज भी लोगों का मिथक है कि घर में शौचालय का इस्तेमाल करना उस स्थान को अशुद्ध करना है। सरकार और औद्योगिक घराने शौचालय का निर्माण करवा सकते हैं, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि लोगों को खुले स्थानों में शौच के नुकसान के प्रति जागरूक करके शौचालयों की परिधि में लाया जाए। उन्हें स्वच्छता के स्वास्थ्य संबंधी और आर्थिक लाभों के बारे में जानकारी दी जाए और यह एहसास दिलाया जाए कि स्वच्छता उनके लिए कितनी आवश्यक है। इस कार्यक्रम की सफलता जनभागीदारी पर निर्भर है। इसलिए यह अत्यावश्यक है कि लोग स्वच्छ और स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए जागृत हों।

                    सुरेश कुमार पटेल
                           सचिव
             राजनीति विज्ञान विषय परिषद
परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस ,जयपुर

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