शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

ट्रिपल तलाक

भारत एक प्रगतिशील राष्ट्र है। भौगोलिक सीमा ही किसी राष्ट्र की  परिभाषा  तय नहीं करती।
इसका आकलन मानव विकास सूचकांक सहित कई अन्य पैमानों पर किया जाता है। जिसमें समाज द्वारा महिलाओं के साथ होने वाला आचरण भी शामिल है।
फिर वह ट्रिपल तलाक हो या अन्य समस्या-
1. आज भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय है, इतनी बड़ी आबादी को निजी कानून की मनमानी पर छोड़ना उचित नहीं है। यह समाज और देश हित मे नहीं है एवं यह समाज व भारतीय संविधान के खिलाफ है।
जिसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि नागरिकों को खासकर मुस्लिम महिलाओं को निजी रीति रिवाज सामाजिक प्रथाओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है।
2. भारत में मुस्लिम महिलाओं की ट्रिपल तलाक से संबंधित समस्या एक गंभीर रूप लेती जा रही है।
भारतीय मुस्लिम महिलाओं का मानना है कि मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने ट्रिपल तलाक देने की प्रक्रिया को वैध माना है। लेकिन यह पवित्र ग्रंथ कुरान के खिलाफ है।
क्योंकि मुस्लिम बोर्ड के नियमों के अनुसार मुस्लिम व्यक्ति के द्वारा एक सांस मे तीन बार तलाक तलाक तलाक बोलने पर पति पत्नी का रिश्ता खत्म हो जाता है।
क्या यह उचित है??
जबकि इस्लाम धर्म में तलाक इतना आसान नहीं है, जितना भारतीय मुस्लिम लोगों ने बना रखा है।

यह तो मौलवी भी मानते हैं कि कुरान एक बार में तीन तलाक को गलत बताता है।
पहली- दूसरी बार तलाक कहने के बाद 1 महीने 10 दिन और तीसरी बार तलाक कहने के बाद 3 महीने 10 दिन की मुद्दत के बाद ही तलाक पूरा माना जाना चाहिए।

3. लेकिन कुछ भारतीय मुस्लिम व लॉ बोर्ड का मानना है कि अगर व्यक्ति को इतना समय दिया गया तो वह दैत्य हो जाएगा।
कुछ मौलवियों का यह भी मानना है कि इस्लाम धर्म में बहु विवाह और एक बार में तीन तलाक मुसलमानों का सांस्कृतिक और सामाजिक मामला है, इसलिए न्यायालय को इससे दूर रहना चाहिए।
मौलवी और बदलाव विरोधी संस्था यह भूल गए कि ट्रिपल तलाक का यह मुद्दा मुस्लिम महिलाओं का है,उन्हें ही इसे भोगना पड़ता है।
यह एकतरफा फैसला है, जो मुस्लिम महिलाओं को  अनुचित लगता है।
इसलिए महिलाएं तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठा रही है, जनहित याचिका दायर कर रही है और सड़कों पर उतर रही है। जबकि भारत में मुस्लिम महिलाओं की मांग तलाक को खत्म करने की नहीं बल्कि ट्रिपल तलाक देने की प्रक्रिया को बदलने की है।
मुस्लिम महिलाओं का मानना है कि समय के साथ बदलाव होना जरूरी है। फिर वह बदलाव धर्म में हो या सामाजिक प्रथा या रीति-रिवाजों में।

# अन्य देशो से तुलना....
दुनिया की 22 इस्लामिक देश ट्रिपल तलाक को कब का रद्द कर चुके हैं। लेकिन भारत ऐसा एकमात्र जनतांत्रिक देश है, जहां ट्रिपल तलाक आज भी जारी है और मुस्लिम महिलाएं सुप्रीम कोर्ट से बराबरी का हक मांग रही हैं।
जो मामला अभी गर्माया हुआ है, कुछ दिनों बाद उसमें उबाल भी आएगा, यह प्राकृतिक नियम है।

अभी हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि आधुनिक धर्मनिरपेक्ष देश में कानून का उद्देश्य सामाजिक बदलाव लाना है। फिर वह बदलाव किसी भी धर्म से संबंधित क्यों ना हो क्योंकि ऐसा ना किया गया ताे यह भारत की सफल देश बनने में बाधा हैं और यह व्यवहार या आचरण भारत को पीछे की तरफ धकेलता है।

न्यायालय ने  ट्रिपल तलाक की आलोचना करते हुए कहा "इस तरह से तुरंत तलाक देना सबसे ज्यादा अपमान जनक है,जो भारत को एक राष्ट्र बनाने में बाधक है।" अदालत ने कहा पूरा कुरान पत्नी को तब तक तलाक देने के बहाने से व्यक्ति को मना करता है जब तक विश्वसनीय रुप से पति की आज्ञा का पालन करती है।
न्यायालय ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर ही  तीखी टिप्पणी की और कहा कोई भी पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं है। कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को लेकर दो मुस्लिम महिलाओं की याचिका पर सुनवाई  में यह टिप्पणी की "न्यायलय का मानना है कि मजहब जो भी है, एक विश्वास है, यह तथ्य की संविधान धर्म से ऊपर है इसीलिए धर्म के नाम पर महिलाओं से भेदभाव नहीं होना चाहिए।"

जो सवाल न्यायालय को परेशान करता है वह यह कि.....
- क्या मुस्लिम पत्नियों को हमेशा इस तरह की स्वेच्छाचारिता से पीड़ित रहना चाहिए??
- क्या उनका निजी कानून इन दुर्भाग्यपूर्ण पत्नियों के प्रति  इतना कठोर होना चाहिए??
- क्या इन यातनाओं को खत्म करने के लिए निजी कानून में उचित संशोधन नहीं होना चाहिए??
न्यायिक आत्मा इन समस्याओं से परेशान हैं।

**सुझाव**
इस्लाम धर्म में शादी एक अनुबंध है। मेरा मानना है कि मुस्लिम महिलाओं को उनके हक दिलाने के लिए मुस्लिम मैरिज एक्ट बनाया जाना चाहिए।
इसमें निकाह से लेकर तलाक तक के प्रावधान हाे और उसका उल्लंघन करने वालों को सजा भी मिले।
युवा मुस्लिम महिलाओं के सम्मान के लिए लगातार काम कर रहे हैं और इस्लाम के नाम पर गुमराह करने वाले लोगों को कहना चाहते हैं कि वे महिलाओं को उनके हक दिलाने के लिए आगे आएं एवं तलाक की वजह से टूटते परिवारों को बचाया जा सकता है।
हमारे मुल्ला-मौलवी ऐसे मामलों में दंपत्तियों को समझाने का प्रयास भी करें।

राहुल शर्मा
(MA final)

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