सोमवार, 2 जनवरी 2017

राज्यों में राज्यपाल की स्थिति एवं भूमिका

भारत का संविधान संघात्मक है। इसमें संघ तथा राज्यों के शासन के संबंध में प्रावधान किया गया है। संविधान के भाग 6 में राज्य शासन के लिए प्रावधान है। यह प्रावधान जम्मू कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों के लिए लागू होता है। जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति के कारण उसके लिए अलग संविधान है। संघ की तरह राज्य की भी शासन पद्धति संसदीय है। भारत में संघीय शासन की भांति राज्यों में भी कार्यपालिका के तीन रूप दिखाई देते हैं।
★नाम मात्र की कार्यपालिका:- राज्यपाल के रूप में
★ वास्तविक किन्तु राजनीतिक कार्यपालिका:- मुख्यमंत्री तथा मंत्रीपरिषद
★वास्तविक किंतु प्रशासनिक कार्य पालिका:- कर्मचारी तंत्र

राज्यपाल
राज्य प्रशासन में सर्वोच्च पद राज्यपाल का होता है। भारत में राज्यपाल का चयन अमेरिका की भांति जनता द्वारा निर्वाचित पद्धति से नहीं होता है, बल्कि हमारे यहां राज्यपाल राष्ट्रपति द्वारा नामित व्यक्ति होता है। राजस्थान में उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को सन् 1952-55 तक राज्य का महाराज प्रमुख बनाया गया था। 1 नवंबर, 1956 से सभी राज्यों के गवर्नर राज्यपाल कहलाने लगे। दिल्ली, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह तथा पुदुच्चेरी में उप राज्यपाल का पद है। लक्षद्वीप, चंडीगढ़, दमन एवं दीव, दादरा एवं नगर हवेली में यह प्रशासक कहलाता है।

राज्यपाल की नियुक्ति
भारत में राज्यपाल का चयन कनाडा की भांति संघीय सरकार करती है। अनुच्छेद 155 के अनुसार राष्ट्रपति प्रत्यक्ष रुप से राज्यपाल की नियुक्ति करता है। नियुक्ति से संबंधित दो प्रथाएं प्रचलित हैं:-
★किसी व्यक्ति को उस राज्य का राज्यपाल नहीं नियुक्त किया जाएगा, जिसका वह निवासी हो।
★राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किया जाता है।

कार्य अवधि
राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधि होता है तथा राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद पर बना रहता है। वह कभी भी पद से हटाया जा सकता है। यद्यपि राज्यपाल की कार्य अवधि उसकेे पदग्रहण से 5 वर्ष तक होती है। इस 5 वर्ष की अवधि के समापन के बाद वह तब तक पद पर बना रहता है, जब तक उसके उत्तराधिकारी पदग्रहण नहीं करते।

शक्तियां एवं कार्य
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। वह मंत्री परिषद की सलाह से कार्य करता है, परंतु उसकी संवैधानिक स्थिति मंत्रिपरिषद की तुलना में बहुत सुरक्षित है। वह राष्ट्रपति के समान असहाय नहीं है।
विवेकाधीन शक्ति:- परंपरा के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति को भेजी जाने वाली पाक्षिक रिपोर्ट के संबंध में निर्णय ले सकता है।  कुछ राज्यों के राज्यपालों को विशेष उत्तरदायित्व का निर्वाह करना होता है। विशेष उत्तरदायित्व का अर्थ है राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह तो ले परंतु इसे मानने हेतु बाध्य नहीं हो और नहीं उसे सलाह लेने की जरूरत पड़ती है।

राज्यपाल की वास्तविक स्थिति एवं भूमिका
भारत सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत राज्यपाल का पद वास्तविक शक्तियों से परिपूर्ण एक प्रभावी पद था। किन्तु नये संविधान में यह अंशतः प्रतीकात्मक पद बना दिया गया। इस संबंध में सरोजिनी नायडू ने राज्यपाल को "सोने के पिंजरे में कैद एक चिड़िया" के समान जबकि विजयलक्ष्मी पंडित ने इसे "वेतन का आकर्षण" बताया। राजस्थान की राज्यपाल मारग्रेट अल्वा का मत था कि राज्यपाल राज्य सरकारों के लिए "सिरदर्द" है, तो दूसरी ओर केंद्र सरकार भी इन्हें महत्व नहीं देती है।
चूंकि राज्यपाल जनसाधारण द्वारा चुना हुआ व्यक्ति न होकर राष्ट्रपति द्वारा नामित व्यक्ति होता है, अतः वह अपना अधिकांश कार्य राज्य के मंत्रिमंडल के परामर्श के अनुरूप करता है। जहां तक स्वविवेकीय शक्तियों का प्रश्न है, उन का अवसर दैनंदिन नहीं होता है, बल्कि विशेष परिस्थिति, वह भी सीमित स्वतंत्रता के साथ होता है। अतः राज्यपाल की स्थिति संवैधानिक प्रमुख के रूप में सैद्धांतिक है। राज्यपाल की भूमिका 'केंद्र के अभिकर्ता' के रूप में है जो राजनीतिक मान्यताओं तथा स्वार्थों के आधार पर निर्णय करते हैं।

राज्यपाल के पद से संबंधित समस्त व्यवस्था पर पुनर्विचार की आवश्यकता
भारतीय संविधान के द्वारा स्थापित राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत यदि किसी पद की गरिमा को सर्वाधिक आघात हुआ है, तो वह राज्यपाल का पद ही है। सर्वप्रथम:-
◆ राज्यपाल पद पर सर्वमान्य योग्यता और प्रतिष्ठा के व्यक्तियों को नियुक्त किया जाना चाहिए। राजनीतिज्ञ को राज्यपाल पद पर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। केवल ऐसे ही व्यक्ति को राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए, जिन्होंने राजनीति, प्रशासन, शिक्षा, समाज सेवा के क्षेत्रों में सम्मान प्राप्त किया हो और जो दलीय राजनीति से ऊपर उठकर परिस्थितियों का आकलन करने तथा स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं।
◆ राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच संदेह, अविश्वास, मतभेद और तनाव की स्थिति उत्पन्न न हो; इसके लिए राज्यपाल की नियुक्ति के बारे में राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श की व्यवस्था को अनिवार्य कर देना चाहिये।
◆ केंद्रीय सरकार द्वारा राज्यपाल के पद के संबंध में मर्यादित आचरण की स्थिति अपनाते हुए केंद्रीय सरकार द्वारा राज्यपाल की पदच्युति एवं मनमाने तौर पर राज्यपाल के एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरण के मार्ग संबंधित राजनीतिक विवादों से दूर रखने की चेष्टा की जानी चाहिए।

राजू धत्तरवाल
बीए द्वितीय वर्ष
परिष्कार कॉलेज

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